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खुश रहने के लिए क्या करें | ख़ुश रहने की वजह | What to do to be happy

क्या खुश रहने की वजह हो सकती है जिनसे वास्तविक ख़ुशी मिल सके

 नही…..क्योंकि ख़ुश रहने की वजह आपको स्वयं तलाशनी होगी । कोई अन्य व्यक्ति मात्र बाहरी जगत से जुड़ी ढेरो वजह बता सकता है पर वास्तव में आपके अंदर ख़ुशी ला पाए ऐसी वजह का होना आपके ऊपर निर्भर है।

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खुश रहने के लिए क्या करें | What to do to be happy

अगर आप ख़ुश रहने की वजह तलाशते हैं तो यह निश्चित है आप वास्तविक ख़ुशी का अनुभव नही कर सकते इसलिए खुशी के लिए कोई वजह तलाशने की बजाय आप स्वयं वजह बनिये और ख़ुश रहिए।

मैने अनुभव किया है जब इंसान स्वयं की खुशी के लिए कोई न कोई वजह तलाशता है और उसे मिल भी जाती है तो कुछ दिन के लिए ही रहती है फिर उसे नई वजह की तलाश करनी पड़ती है । और यही क्रम पूरे जीवन चलता रहता है जबकि वह भूल जाता है कि उसकी अपनी खुशी की वजह वह स्वयं है। ठीक इसके विपरीत जब वजह नही मिलती तो वह ख़ुश नही रह पाता।

वास्तविक ख़ुशी मन की आंतरिक शक्ति है, भाव है, एक एहसास है जो हमे अपने वर्तमान जीवन से प्राप्त होता है। आंतरिक ख़ुशी जिसे किसी बाह्य जगत में वजह का मोहताज नही होना पड़ता परन्तु जब तक हम सहज सरल और विवेकशील बुद्धि के मालिक नही होते तब तक हमारी खुशी बाह्य जगत से ही जुड़ी रहती है । इसलिए ख़ुश रहने की वजह प्रत्येक व्यक्ति के स्वयं के नज़रिए, बुद्धि, विवेक, व मन नियंत्रण पर निर्भर है।

प्रत्येक व्यक्ति का, स्वयं के जीवन को देखने का नज़रिया भिन्न है इसलिए कोई एक आधारिक वजह सभी के लिए ख़ुशी की वजह नही बन सकती । आप स्वयं में तलाश कर सकते हैं कि वह कौन सी वजह है जिसके कारण आप खुश रह सकते हैं क्योंकि जीवन आपका है और चुनाव भी आपका होगा किसी अन्य का नही । अन्य व्यक्ति मात्र प्रयास कर सकता है उस वजह को खोजने के लिए जिससे ख़ुशी मिलती हो परन्तु जरूरी नही उससे आपको ख़ुशी मिले ।

यदि कोई अपनी ख़ुशी को भौतिक वास्तुवों से नहीं जोड़ता तो हो सकता है वह वास्तव में खुश हो, अतः जो भी भौतिक वस्तुएँ अथवा सुख हैं वह मात्र किसी के जीवन की बाह्य आवश्यकता को पूर्ण करते हैं और समय के साथ इनसे जुड़ी ख़ुशी धीमी होते हुए खत्म हो जाती है परन्तु किसी की आंतरिक ख़ुशी, प्रसन्नता, सुख मात्र उसके स्वयं से ही है जिसमें वह जितना चाहे उतना मन से ख़ुश रह सकता है।

कुछ लोग वास्तव में ख़ुश हूँ क्योंकि वो सदैव सकरात्मक सोंच को बनाये रखने का हर संभव प्रयास करते हैं।

यदि कोई किसी भी पहलू को दो नज़रिए से देखना पसंद करता है तो वह उसके लिए बेहतर हो सकता है ताकि यदि किसी एक नज़रिए से उसे दुःख हो या नकारात्मकता का आभास हो तो दूसरा नज़रिया उसे संभालते हुए संतुलित कर दे। ऐसा नहीं है कि सभी के अनुकूल जीवन की सारी घटनाएं घटित होती हैं या किसी के पास संघर्ष नहीं हैं। बस कोई अपने संघर्षो और समस्याओं से ख़ुशी ख़ुशी लड़ता है तो कोई इसे कोसते हुए स्वयं में परेशान रहकर लड़ता है।

परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने का ही तो संघर्ष है किसी भी मनुष्य के लिये परन्तु आप और हम सिर्फ प्रयास कर सकते हैं जो कभी हमारे अनुरूप होती हैं तो कभी नहीं परन्तु हमे दोनो स्थितियों को स्वीकार करने की आवश्यकता है। और सभी परिस्थिति में कोशिश यही करनी चाहिए कि इनसे निपटने का सकारत्मक उपाय अपनाया जाए ताकि उक्त समस्याओं से शिघ्रता से बाहर निकल कर पहले जैसी स्थिति में आया जा सके और खुश रहा जाए।

आईने ( संघर्ष ) से जो डर गए तुम

हर क़दम पीछे ही होते जाओगे

ज़िंदा रहते ख़ुद में जो मर गए तुम

तो सोंची मंजिल कैसे पाओगे

उठो चलो और चलते जाओ

निरंतर बिना डरे बढ़ते जाओ

कोई चिंता न कोई फिक्र करो

होगा सब अच्छा बस खुश रहो

- स्वरचित कविता।

जब भी कभी चिंता या दुख का मुझे आभास हो तो मैं इसे याद कर लेता हूँ।


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