मैं तो उस वक़्त पूरी तरह टूट गई थी जब पिता के देहांत के बाद दो छोटे भाईयों के साथ घर का बोझ मेरे साथ आ गया। माँ तो बचपन मे ही छोड़ गई थी एक पिता का ही सहारा था वो भी मुझसे छीन लिया गया। क्या करूँ ........ कैसे जीवन की नाव को पार लगाऊँ, भगवान अब तुम्हारा ही सहारे सब कुछ छोड़ रहे हूँ मेरी तो हिम्मत ही नहीं हो रही है इस जीवन मे आगे चलने की, मन करता है अभी आत्महत्या कर लूँ पर कैसे ..... भगवान उन दोनो बच्चो का क्या होगा? जो अभी दुनिया ही नहीं देखी गई, बोलते बोलते सरिता के आँखों मे आँसूओं की धार बहने लगती है और फूट फूट कर भगवान के सामने रोने लगती है लेकिन फिर अपने आप मे साहस जुटाती है और मन मजबूत करती है '' नहीं नही हम कुछ हिम्मत करेंगे। होगा जीना होगा हमे अपने लिये न सही पर अपने दो भाईयों के लिये। हाँ हाँ जीना होगा। '' यही सब बाते सरिता के मन मे घूमने कर उसे परेशान कर रही थी वह अपने कच्चे घर के लिए, जिसमें केवल एक कमरा बना था और उस कमरे के सामने छोटे से आँगन मे बने मन्दिर के पास बैठे बैठे सलचंद थे। हो रहा था। आँगन के पास एक छोटी सी रसोंई भी थी जो टिन की चादर से ढकी थी ताकि बारिस मे किसी प्रकार की समस्या न हो। वही आँगन ही उसका छोटा संसार जैसा था।
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17 वर्ष की उम्र थी सरिता की ,जो अपने माता पिता को खो चुकि थी, जिसके ऊपर घर का सारा भार था 5 साल का अनु और 3 साल का सोनू जो सरिता के छोटे भाई थे, दोनो सरिता के ही सहारे थे और सरिता भी उन दोनो से अति प्रेम करती थी । 2, 3 विघा खेती की जमीन और एक छोटा सा घर ही मात्र उनके जीवन यापन का साधन था।
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सरिता हमेशा चिंतित रहती थी कि बिना माँ बाप के वह कैसे जी फाउंडगी और कैसे उन दो भाईयों का पालन पोषण कर फाउंडगी। समस्याकि उसके घर के अगल बगल पिता समान चाचा का भी घर था लेकिन सरिता के दोनो चाचा अपने ही परिवार मे परेशान थे। आय का उचित साधन न होने के कारण से दोनो चाचाओं का परिवार खेती पर ही निर्भर था। उनके लिए अपना परिवार सम्भालना मुश्किल था तो सरिता उनसे क्या उम्मीद रखती है। और तो और दोनो उसे अपने खानदान का सामान भी मानते थे क्योंकि, बचपन में तो माँ चल बसी और उसके कुछ किलोमीटर बाद पिता यानि उनके बड़े भाई इस दुनिया से चल बसे इसीलिये दोनो चाची और चाचा बहुत कम ही उसके घर मे जाते और दूरी बनाते। रखते हुए। यहाँ तक की अपने बच्चों को भी सरिता से दूर रखना।
सरिता दिखने मे बहुत सुन्दर थी और शादी के लायक भी हो रही थी पर उसे कुछ भी अपना ध्यान नही था पिता के देहान्त के बाद से उसने आईना देखना ही बन्द कर दिया था । उसकी चिंता करने वाला भी कोई नही था । बस सुबह से लेकर शाम तक खेती बाड़ी का काम करना और दोनो भाईयों के लिये भोजन का प्रबन्ध करना तथा उनका ध्यान रखना । किसी से न मिलना न बात करना हमेशा अपने आप मे गुमसुम रहती थी और जब कभी काम से फुर्सत मिल जाती तो आंगन मे बैठ कर मन्दिर के सामने भगवान से बाते करना अपने अतीत को लेकर और पास मे पड़ी चारपाई पर पड़े रहना यही जीवनचर्या थी उसकी। चेहरे की मुस्कान मानो उसने त्याग ही दी थी कोई कितना भी उसे हँसाने का प्रयास करे मजाल है चेहरे पर ज़रा सी भी सिरकन आ जाये। अनु समझदार था इसलिये वह दीदी के साथ काम मे हाथ बटाया करता था पर सोनू तो बस खेल कूद मे ही रहता था। तीनो का जीवन बस किसी प्रकार चल रहा था। गाँव की एक दो लड़किया मिलने आ भी जाती तो आँगन मे ही मुलाकात करके चली जाती धीरे धीरे उन लड़कियो का भी आना जाना कम हो गया ।
सरिता दिखने मे बहुत सुन्दर थी और शादी के लायक भी हो रही थी पर उसे कुछ भी अपना ध्यान नही था पिता के देहान्त के बाद से उसने आईना देखना ही बन्द कर दिया था । उसकी चिंता करने वाला भी कोई नही था । बस सुबह से लेकर शाम तक खेती बाड़ी का काम करना और दोनो भाईयों के लिये भोजन का प्रबन्ध करना तथा उनका ध्यान रखना । किसी से न मिलना न बात करना हमेशा अपने आप मे गुमसुम रहती थी और जब कभी काम से फुर्सत मिल जाती तो आंगन मे बैठ कर मन्दिर के सामने भगवान से बाते करना अपने अतीत को लेकर और पास मे पड़ी चारपाई पर पड़े रहना यही जीवनचर्या थी उसकी। चेहरे की मुस्कान मानो उसने त्याग ही दी थी कोई कितना भी उसे हँसाने का प्रयास करे मजाल है चेहरे पर ज़रा सी भी सिरकन आ जाये। अनु समझदार था इसलिये वह दीदी के साथ काम मे हाथ बटाया करता था पर सोनू तो बस खेल कूद मे ही रहता था। तीनो का जीवन बस किसी प्रकार चल रहा था। गाँव की एक दो लड़किया मिलने आ भी जाती तो आँगन मे ही मुलाकात करके चली जाती धीरे धीरे उन लड़कियो का भी आना जाना कम हो गया ।
सरिता के जीवन मे मानो उसके गुजरे हुये दिनो की जगह कम होने लगी थी क्योंकि अब उसे भाभी के रूप मे सहेली मिल गयी थी जिससे वह अपना दर्द सुना सकती थी दोनो एक दूसरे के छोटे छोटे कामो मे हाथ बटाने लगी । सरिता मे परिवर्तन आने लगे दोनो ननद भाभी आपस मे ढेर सारी बाते करते और साथ गाँव की बाज़ार खेत बाग आदि जगहो पर आना जाना हो गया। सरिता को अब मुस्कराना आ गया था जीवन के वो बीते हुये पल रोशनी की वजह से उससे दूर जाने लगे थे।
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एक दिन रोशनी ने रात के खाने के वक्त सभी के सामने सरिता की शादी की बात छेड़ दी ’’ अम्मा सरिता अब जवान हो गयी है क्यों न उसकी शादी कर दी जाये ’’ इस पर ससुर नाराज़ हो गये और बोले ’’ तुम को ज्यादा चिंता है उसकी कहाँ से होगी शादी पैसे कौन देगा’’ रोशनी ने डरते डरते बोला ’’ तो क्या यूँ ही सारा जीवन कुआँरी ही बैठी रहेगी। ’’ अम्मा कुछ बोल पाती इससे पहले रोशनी का पति बोल पड़ा ’’ हाँ पिता जी अब उसका हमारे सिवा है भी कौन आखिर शादी तो करनी होगी ’’ ’’ इस बारे मे देवर जी से कहो मेरे पास तो इतना है नही कि ........’’ अम्मा तपाक से बोल पड़ी । सरिता की शादी की चर्चा का विषय गम्भीर हो गया । इसी के चलते दोनो भाईयों मे बहस हो गयी शादी के खर्चे को लेकर । हुआ ये कि दोनो भाईयो ने इस बार की होने वाली फसल में से जो भी पैदावार होगी उसमे से कुछ भाग बेंच कर शादी कर ली जायेगी। बारिस का मौसम था। दोनो भाई अपनी खेती मे मेहनत मे लग गये । सरिता भी अपनी शादी की बात को लेकर खुश तो थी पर उसे इस बात की भी चिंता थी कि उसके जाने के बाद अनु और सोनू की देखभाल कौन करेगा। यदि विवाह के लिये वह मना भी करती तो समाज मे तरह तरह की बाते होंगी जिसे उसके चाचा को झेलना पड़ेगा । और वह अब ये नही चाहती थी की उसकी वजह से किसी को कोई कष्ट हो । कुछ समय बीता फ़सल कटने को तैयार थी परन्तु अनहोनी कोई टाल नही सकता तेज आंधी और बारिस के कारण सभी किसानो की फ़सल नष्ट हो गयी जिससे सभी को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ। सरिता के घर वाले विशेष कर दोनो चाचा इस घटना का जिम्मेदार उसी को ठहरा दिया जिसके कारण उसकी शादी भी रूक गयी । दोनो चाचियों ने उसे बहुत कोसा बहुत भला बुरा कहा । सरिता भी ये मान चुकी थी की उसके जीवन मे खुशियों की कोई जगह नही और इसी के चलते उसने कभी शादी न करने का फैसला ले लिया । इसके साथ-साथ रोशनी को भी सरिता की वजह से अपनी सास की सुनना पड़ा । घर मे आये दिन बहस होने लगी, घर की माली हालत फ़सल नष्ट होने के कारण पहले से ज्यादा ख़राब हो गयी। सरिता और उसके दोनो भाई खाने को तरसने लगे । कुछ दिन तक तो मांग मांग कर किसी प्रकार काम चला पर एक दिन वह भी बन्द हो गया। तंग आकर सरिता मजदूरी करने लगी ताकि वह अपने भाईयो का पोषण कर सके उन्हे किसी प्रकार जिया सके। सरिता का जीवन तो अब नीरस ही था बस उसको इस बात की आशा थी कि एक दिन उसके भाई बड़े होंगे तब उसे कुछ आराम मिलेगा। बस इसी आस मे उसने अपने जीवन को अपने भाईयों के लिये समर्पित कर दिया।
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समय गुजरा दोनो भाई जैसे जैसे बड़े होते गये सरिता का काम हल्का होता गया । रोशनी अपने पति के साथ हमेशा के लिये शहर चली गयी जिससे सरिता फिर से अकेली हो गयी। जीवन का पहिया चलता गया।
एक समय वह भी आया जब अनु की शादी हो गयी घर मे एक और नयी बहु सरिता को भाभी के रूप मे मिल गयी। सरिता का घर अब अच्छे से चलने लगा था , खुशियों का महौल था लेकिन सरिता अब भी उसी आँगन के मन्दिर के सामने भगवान को धन्यवाद देती रहती उसके जीवन को छोटी बड़ी तकलीफो पार करने की हिम्मत देने के लिये। अनु ने शादी के बाद अपने ऊपर घर की जिम्मेदारी ले ली थी लेकिन फिर भी सरिता उसकी जिम्मेदारी मे उसका साथ देती थी । सब कुछ ठीक चल रहा था।
एक दिन सरिता से उसकी भाभी ने सब्जी लाने को कहा ’’ दीदी सब्जी खत्म हो गयी कोई है भी नही तो क्या बनाया जाये’’ अरे एक काम करती हू क्यों न आज गुल्लर के गादी की सब्जी बनाई जाये’’ सरिता ने अपनी भाभी से कहा। इस पर भाभी ने हामी भर दी। घर से कुछ दूरी पर गूलर का पेड़ लगा था तो सरिता टोकरी उठा कर चली गयी । वहाँ जाकर वह गाँव के कुछ बच्चो से कहती है गादी तोड़ने को पर जब कोई तैयार नही होता है तब वह स्वयं उस पेड़ पर चढ़ने का प्रयास करती है और जैसे ही कुछ दूर पेड़ पर चढ़ती वैसे ही अचानक पैर फिसलने से गिर जाती है और उसके दायें हाथ में चोट आ जाती है । जिसके कारण वह बीमार पड़ जाती है और हाथ के चोटिल होने की वजह से सरिता की हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही रहती है। अनु ने भी उसकी चोट को गम्भीरता से नही लिया जिससे वह हाथ पूरा बेकार हो गया और अन्दर ही अन्दर हड्डिया गलने लगी। धीरे धीरे वह चारपाई पक़ड़ लेती है । कुछ दिन तक अनु की पत्नि उसकी सेवा करती है पर धीरे धीरे वह भी कम हो जाता है । सरिता की जि़न्दगी अपने आँगन मे पड़ी चारपाई पर किसी प्रकार कुछ वर्षो तक चलती है तथा उसके भाई भाभी भी उसका ध्यान नही रख पाते । बस सुबह शाम किसी प्रकार उसे भोजन मिल जाता उसकी भाभी के द्वारा , लेकिन कभी पास बैठने की फुर्सत नही थी। वह इतनी कमजोर हो गयी जिससे उसका चलना फिरना भी कम हो गया । दोनो भाई भी अपने अपने काम मे व्यस्त थे किसी को उसकी परवाह ही नही थी और आलम ये था कि घर मे कोई भी उसके आस पास नही भटकता जिसके चलते वह अकेले पन का शिकार फिर से हो गयी और अपने आप मे ही कुढती गयी । भगवान से रात दिन उसकी एक ही प्रार्थना थी कि उसे मौत मिल जाये। उसने आगे जीने की आस छोड़ दी थी अब हिम्मत नही थी जीवन जीने की उसके अन्दर । और वह दिन आया जब सरिता सब कुछ छोड़कर हमेशा के लिये इस दुनिया से चल बसी।
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