प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस एक वार्षिक आयोजन के रूप मे मनाया जाता है। अमेरकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 मे इसकी स्थापना की थी ताकि पर्यावरण सरंक्षरण को समर्थन मिल सके व इसे पर्यावरण शिक्षा के रूप मे देखा जा सके । नेल्सन के अनुसार पर्यावरण सरंक्षण हमारे लिये अति महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी पर हम सभी जीवों का जीवन निर्भर है।
पृथ्वी दिवस | Earth Day 2020 |
पृथ्वी दिवस | Earth Day
पृथ्वी से ही हमारा अस्तित्व है और समस्त जीवन पृथ्वी की गोद मे ही व्यतीत होता है इसलिये एक दिन ही क्यों हमे प्रत्येक क्षण पृथ्वी के योगदान को ध्यान में रखना चाहिये।
हम भले ही अपने अपने घरो मे रहते हैं पर ब्रम्हाण्ड की दृष्टि से यह पृृथ्वी हमारा एक घर है । इसलिये इसके सरंक्षण की जिम्मेदारी हम सभी की बराबर है । जिस प्रकार हम अपने घर को साफ सुथरा और रहने योग्य बनाते है वैसे ही इस पृथ्वी को भी साफ सुथरा रखना हमारी प्रथम जिम्मेदारी है। अतः यदि हम सभी केवल अपने ही क्षेत्र मे आस पास के परिवेश पर ध्यान दे लें तो इसमे कोई संदेह नही कि समस्त जननिवास क्षेत्र प्राकृतिक रूप से जैसे थे वैसे ही न बने रहेंगें।
पृथ्वी ही केवल एक ऐसा ग्रह है हमारी आकाश गंगा मे जिसपर जीवन सम्भव हो पाया है। यह हम सभी अच्छे से जानते हैं। परन्तु हम मानव अपने जीवन को बेहतर और बेहतर बानाने के उद्देश्य से जाने अन्जाने मे इसके धरातल पर अप्राकृतिक रूप से कुछ न कुछ परिवर्तन करते चले जा रहें हैं। जिसके कारण मानवी संघर्ष उभर कर सामने आ रहा है।
सूर्य, जल, वायु ,वनस्पती, और मिट्टी इस पृथ्वी पर जीवन के निर्माण मे मूख्य रूप से प्रमूख स्त्रोत हैं जिन्हे किसी भी सूरत मे नही बानाया जा सकता । विज्ञान कितना भी तरक्की कर ले जाये पर वह प्राकृतिक का कोई भी अवयव विल्कुल वैसा नही बना सकता जैसा प्रकृति से हमे प्राप्त होता है। हाँ इतना हो सकता है कि हम सभी मिलकर प्राकृतिक रूप से जो उपहार स्वरूप मिला है उसे संरक्षित कर सकते है उसका सही सही उपयोग कर सकते हैं।
समस्त जीव जन्तु और मानवी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पृथ्वी पर मात्र प्रकृति ही है जो इसे पूरा करती आ रही है तथा प्रकृति के विभिन्न तत्वों में भूमि,वायु,जल वनस्पति मुख्य रूप से ऐसे तत्व है जिनके आधार पर ही समस्त जीवों का जीवन निर्भर है। इनमे से दो तत्व वायु और जल जो प्रकृति के प्राण है यदि इनका ही अस्तित्व न रहे तो सब खत्म। स्पष्टतः प्रकृति के बिना मानव सभ्यता के विकसित होने का कोई अन्य साधन है ही नही, परन्तु ज्ञात है कि इस पृथ्वी पर उपलब्ध प्राकृतिक साधन सीमित है ,तथा मानव प्राणी इन उपलब्ध साधनो का प्रयोग करना अच्छे से सीख गया है और इनका प्रयोग दिन प्रतिदिन हो भी रहा है ।
अतः इस प्रयोग को मानव प्राणी द्वारा प्रकृति का दोहन करना कहते हैं । आज के युग मे प्राकृतिक साधनो का इस प्रकार से दोहन हो रहा है कि इसका रूकना असम्भव है, क्योंकि यह दोहन बढ़ती जनसंख्या के कारण मानवी आवश्यकता का सबसे बड़ा कारण बन गया है। प्राकृतिक तत्वों के संरक्षण की प्रक्रियायें उतनी नही है जितने अनुपात मे इनका दोहन हो रहा है ,और ये भलीभांति ज्ञात है कि प्राकृतिक तत्वो को किसी प्रकार से निर्मित नही किया जा सकता है, बस जो है उसको संरक्षित ही किया जा सकता है।
पृथ्वी पर प्रत्येक मनुष्य को पता है कि पेड़ पौधे लगाने से प्राकृतिक असुंतलन को कम किया जा सकता है । पर समस्या ये है कि जब शहरों में घर मकानो का स्थान ही इतना पर्याप्त नही हो पा रहा है तो पेड़ों के लिए स्थान कहाँ से लाये । और तो और जो सड़क के किनारे वृक्ष लगे भी थे उनको भी हटा दिया गया परिवहन अवरोध के चलते । कुल मिलाकर देश मे सरकार द्वारा वनस्पति के स्थान के लिए एक व्यवस्थित प्रावधान लाने की आवश्यकता है जिसमे मानव सभ्यता के विकास के साथ साथ वनस्पति के बारे में भी गहन सोंच विचार की अवधारणा बन सके ।
मेरे हिसाब से कही पर भी यदि 1 वृक्ष,पेड़ काटना आवश्यक हो तो रिक्त स्थान पर 5 पेड़,पौधे लगाना अतिआवश्यक हो जाए इससे बेहतर परिणाम मिलेगा।
उदाहरण के तौर पे माना कि 1वर्ष मे किसी क्षेत्र विशेष मे 1000 पेड़ काटना पड़ता है तो उसके स्थान पर 5000 नए पेड़ किसी अन्य स्थान पर निरूपित किये जाना आवशयक हो और इन पेड़ों की सुरक्षा तथा रख रखाव तब तक करनी चाहिए जबतक ये मजबूत न हो जायें भले ही इस कार्य के लिए कोई अलग विभाग ही क्यों न बनाना पड़े जो नियमित भी हों ।
इसी तरह यदि आगे 10 वर्षो तक यही प्रक्रिया जारी रही तो 10 वर्षो में कुल कटे पेड़ 10 हज़ार और नये कुल निरूपित 50 हज़ार पेड़ होंगे जबतक अगले 10 वर्षो में और 10 हजार पेंड़ कटेगे तबतक हमारे आस पास 50 हज़ार पेंड़ 10 साल बड़े हो चुके होंगे और 50 हज़ार नए पेड़ लग चुके होंगे तथा एक समय ऐसा आयेगा जब कटे पेड़ो से कई हज़ार गुना पेड़ समुचित स्वैच्छिक नए स्थानों पर होगें जिससे चारो तरफ हरियाली ही हरियाली होगी और सबसे अहम बात यह है कि इन पेड़ो से शहरी करण के साथ साथ सौन्दर्यीकरण भी स्वतः हो जायेगा। फिर शुद्ध वायु की भरपूर मात्रा होगी और तापमान मे गिरावट आयेगी और जब वायु का वेग सन्तुलित पर्याप्त मात्रा मे होगा तो सन्तुलित बारिश होगी जिससे भूमि का जलस्तर बढ़ेगा और भूमि उपजाउ और मजबूत होगी इसके साथ साथ देश की आर्थिक स्थिति मे भी दृढ़ता आयेगी। जन-जीवन खुशहाल और वातावरण शान्त होगा। क्योंकि मात्र वनस्पति ही प्रकृति के सन्तुलन का एकाकी साधन है जिससे हमारी पृथ्वी पर जीवन सुगम बना रहेगा ।
इसी तरह यदि आगे 10 वर्षो तक यही प्रक्रिया जारी रही तो 10 वर्षो में कुल कटे पेड़ 10 हज़ार और नये कुल निरूपित 50 हज़ार पेड़ होंगे जबतक अगले 10 वर्षो में और 10 हजार पेंड़ कटेगे तबतक हमारे आस पास 50 हज़ार पेंड़ 10 साल बड़े हो चुके होंगे और 50 हज़ार नए पेड़ लग चुके होंगे तथा एक समय ऐसा आयेगा जब कटे पेड़ो से कई हज़ार गुना पेड़ समुचित स्वैच्छिक नए स्थानों पर होगें जिससे चारो तरफ हरियाली ही हरियाली होगी और सबसे अहम बात यह है कि इन पेड़ो से शहरी करण के साथ साथ सौन्दर्यीकरण भी स्वतः हो जायेगा। फिर शुद्ध वायु की भरपूर मात्रा होगी और तापमान मे गिरावट आयेगी और जब वायु का वेग सन्तुलित पर्याप्त मात्रा मे होगा तो सन्तुलित बारिश होगी जिससे भूमि का जलस्तर बढ़ेगा और भूमि उपजाउ और मजबूत होगी इसके साथ साथ देश की आर्थिक स्थिति मे भी दृढ़ता आयेगी। जन-जीवन खुशहाल और वातावरण शान्त होगा। क्योंकि मात्र वनस्पति ही प्रकृति के सन्तुलन का एकाकी साधन है जिससे हमारी पृथ्वी पर जीवन सुगम बना रहेगा ।
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