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शब्दों का चुनाव | Art of Words

शब्दों का चुनाव कैसा हो | शब्द सरंचना का हमारे जीवन मे विशेष महत्व है जिसके आधार पर हमारी पहचान व स्वरूप परिलक्षित होता है | Art of Words [ Speaking, Written, Genral Talk, During Communication in the world ]

विषय है - शब्द , बोल, मानव द्वारा प्रयोग में लाये गए शब्द, बातचीत की शैली, बोलचाल शब्द । 

वर्ण ( अक्षर ) एवं ध्वनि ( आवाज़ )  के समूह को शब्द कहा जाता है। इन शब्दों को उनके व्यूपत्ति, उत्त्पत्ति एवं प्रयोग के आधार पर विभाजित किया गया है। व्युत्पत्ति के आधार पर शब्द के 3 प्रकार है - रूढ़, यौगिक, योग रूढ़। उत्पत्ति के आधार पर शब्द 4 प्रकार के होते हैं  - तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी। .. Read more Wikipedia


वास्तव में शब्दों का हमारे जीवन मे विशेष महत्व हैं । शब्दों का चुनाव व प्रयोग कैसा हो यह आदर्श बातचीत के स्वरूप को दर्शाता है । शब्दों का उचित/ अनुचित अथवा सकारात्मक/नकारात्मक प्रयोग किसी के ह्रदय में स्वयं के व्यक्तित्व की पहचान का निर्माण करता है। 

चाहे मन मे विचार प्रक्रिया हो, या मुख से बोला जाए, लिखा जाए, पढ़ा जाए , सोंच में हो, देखा जाए व सुना जाए, सभी मे शब्दों का अस्तित्व विद्ममान है । 

पूरी दुनिया मे जो भी हम देखते,सुनते और पढ़ते हैं वो सब शब्द और अंक हैं। भाषा कोई भी हो सकती है परंतु बिना शब्द और अंक के उसका कोई अस्तित्व ही नही। बोले गए शब्द एक प्रकार की ऊर्जा है जो उत्पन्न होने के पश्चात निरन्तर विचरण करती रहती है।

वास्तव में हमे अपनी बात व भावना को व्यक्त करने के लिए शब्दो का सहारा लेना पड़ता है अतः अपनी बात को सामने वाले तक सफलतापूर्वक पहुचाने के लिए कौन से शब्दो का चुनाव करना चाहिए या कौन से नही करना चाहिए ये हमारे ज्ञान और विवेक पर निर्भर करता है। साथ ही शब्दों की शैली का भी विशेष महत्त्व है जिसका प्रभाव बोलने और सुनने वाले दोनो पर पड़ता है।

शब्द दो व्यक्तियों के बीच लिखित और मौखिक रूप में संचार का एक उत्तम माध्यम है इसलिए यह आवश्यक है कि शब्दो का सही चुनाव और उत्तम शैली हो जो उस संचार माध्यम की आदर्शता को प्रदर्शित करता है।


हमे हमारे द्वारा बोले गए शब्दों पर विशेष ध्यान होना आवश्यक क्योंकि इन शब्दों का निर्गमन होने के बाद पुनः वापिस होना असंभव है साथ ही ये स्मरण रहे कि बोले गए शब्द किसी अन्य के अंतर्मन में जाने वाले हैं जिसको प्राप्तकर्ता अपनी इच्छानुसार स्थाई या अस्थाई तौर पर सरंक्षित कर सकता है। साथ ही प्राप्त हुए शब्दों के समूहों के आधार पर अपने शब्दों की योजना बनाता है। 

  • चूँकि शब्दों का सही चुनाव ही दो इंसानो के बीच परस्पर व्यक्तित्व, आचरण, सभ्यता, संस्कार व व्यवहार को प्रदर्शित करता है इसलिए विशेष रूप से इसपर ध्यान देना अति आवश्यक है ।
  • शब्द किसी व्यक्ति की प्रथम दृष्टि प्राथमिक पहचान भी है जो उसके परिवेश, प्रष्टभूमि, देशकाल, स्थान, सभ्यता, भाषा, जीवनशैली आदि से परिचित कराता है।
  • हाथ से लिखित शब्द मिटाया जा सकता है पर मुख से बोले गए शब्द कभी वापिस नही हो सकते और न ही मिटाया जा सकता है इसलिए कहा जाता है पहले सोंचो फिर बोलो ताकि किसी प्रकार की असुविधा न उत्पन्न हो साथ ही किसी की भवनाये न आहत हों।

शब्द कैसे होने चाहिए ये निर्भर करता है बोलने वाले पर क्योंकि सुनने वाले के पास विकल्प नही होता है कि वह अपनी तरफ आते शब्दों को रोक सके या वापिस कर सके या दूसरी तरफ मोड़ सके या फिर उसे सुने ही न , परंन्तु बोलने वाले के पास अपने शब्दो पर पूर्ण नियंत्रण होता है। सुनने वाला सुनकर अनसुना कर सकता है भूल सकता है परंतु वह किसी भी प्रकार उन बोले शब्दों को रोक नही सकता । प्रथम मौखिक/ लिखित प्रवाहित शब्दों के आधार पर ही स्रोता/पाठक/उत्तरदाता अपने शब्दों का चुनाव करने में सक्षम होता जिससे शब्द संचार प्रक्रिया आगे बढ़ती है।

  • यह प्रथम आवश्यक है कि बोले गए शब्दों का चुनाव कैसा होना चाहिए, त्वरित व शांत शब्द समायोजन कैसा होना चाहिए इसमें विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
  • शब्दो के प्रवाह की गति,शैली, और प्रमाणिकता का भी बहुत महत्व है जो किसी मानव मस्तिष्क की सोंच, समझ, अनुभव, विचार , बुद्धिमता, व विवेकशीलता को भी प्रदर्शित करता जिससे समाजिक स्थिति, व्यक्तिगत व्यवहार व आचरण का आकलन किया जा सकता है।

आजकल ज्यादातर मनुष्य के सुख व दुःख के मूल कारण हैं शब्दों का उचित चुनाव का होना या न होना । शब्दों के सही और गलत चुनाव से ही आपसी रिश्तों का बनना और बिगड़ना तय होता है समाजिक पारिवारिक स्थिति में रिवर्तन होता है। उचित या अनुचित शब्दो के प्रयोग से आपस मे मनमुटाव, मानसिक व शारीरिक तनाव, शत्रुता, कड़वाहट, अलगाव, भय आदि अथवा प्रेम, मित्रता, निकटता, आपसी भाई चारा, प्रशन्नता, हर्ष, उल्लास आदि उत्पन्न होता है। क्योंकि मनुष्य एक सामाजिक व पारिवारिक प्राणी है जिससे वह अलग नही हो सकता और सामाजिक व पारिवरिक स्तर पर वह अधिकतर शब्दों के माध्यम से ही आपस मे जुड़ा रहता है।

शब्द तीर या काँटों की तरह नुकीले और कँटीले हों या फूल की तरह कोमल व सुंदर हों , मिर्च की तरह तीखे हों या शहद की तरह मधुर हैं अथवा सत्य हों या असत्य हों यह तय करना स्वयं पर निर्भर करता है। एक ग़लत शब्द आपसी रिश्ते,नातों, सम्बन्धों में दरार उत्पन्न कर सकता है जिससे दूरिया बढ़ती हैं नकारात्मकता का जन्म होता है वहीं एक सही शब्द बिड़गड़े हुए सम्बन्धों को जोड़ सकता है, आपसी रिश्तों, सम्बन्धों में सौहार्द और प्रसन्नता ला सकता है अनियंत्रित स्थिति को नियंत्रित कर सकता है । शब्दो के सही चुनाव व उचित अनुचित प्रयोग से आपको अपने करियर, वयवसाय, व्यापार, नौकरी, शिक्षा, व अन्य कई क्षत्रों में उन्नति या अवनति प्राप्त होती है।

  • शब्दों में -चालाकी, होशियारी, छल, कपट, द्वेष , घृणा, झूट, स्वार्थ, आदि का समावेश हो या फिर शब्दों में - प्रेम, करुणा, मघुरता, सत्य, निःस्वार्थ, सहायता, कोमलता, सहजता, सरलता अपना पन, आदि का समावेश हो , दोनो स्वयं पर निर्भर है।

आज कल परिवार, समाज, रिश्ते नातो तथा सम्बन्धों का टूटना, बिखरना व उनमें अलगाव होना या लड़ाई, झगड़ा, मारपीट, बे वजह की बहस, गाली- गलौज, नफरत, घृणा, दुःख,तकलीफ़ आदि का मूल कारण है शब्दों के सही चुनाव का न होना तथा उन शब्दों के अनुसार ही मानव द्वारा कर्म किया जाना । क्योंकि हम जैसे शब्दों का प्रयोग करते है वैसे ही हमारे आस पास का वातावरण निर्मित होता है और हमारे द्वारा बोले गए क्रिया रूपी शब्दों के बदले प्रतिउत्तर में पर्तिक्रिया रूपी शब्द प्राप्त होते हैं इसलिए आवश्यक तो यही है सदैव सकारात्मक शब्दो का चयन किया जाना चाहिए ताकि नकारात्मक परिस्थिति में परिवर्तन आ सके।

वास्तव में शब्द स्वयं में एक अद्भुत ऊर्जा है जिसका उदगम होने के बाद प्रवाह होता रहता है। इसलिए स्वयं के लिए व अन्य के लिए सकारात्मक शब्दो का ही प्रयोग व चुनाव हितकर है।

  • कभी कभी शब्दों का भार बहुत भारी होता तो कभी कभी ये वायु से भी हल्का होता है।
  • श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को स्वयं के शब्दों से प्रेरित किया था और ज्ञान दिया था ।
  • वेद, पुराण , रामायण, बाईबल, गीता, कुरान आदि सभी धार्मिक ग्रन्थ में लिखे सकारात्मक शब्दों का संचरण व विचरण आज मानव मस्तिष्क में हो रहा है जिसे एक समय काल खंड में बोला, या लिखा गया था।
  • समस्त प्रेरणादायक पुस्तकों, कहानियों, कविताओं, व लेखन की अन्य विधाओं में लेखकों द्वारा उचित शब्दों का चुनाव ही रचना को पाठक के मानस पटल पर अंकित करता है।

उचित व सकारात्मक शब्दोँ से किसी के आत्मविश्वाश में बृद्धि होती है जीवन में अग्रसर होने की प्रेरणा मिलती है, जीने की आस जगाई जा सकती है, किसी को प्रेरित किया जा सकता, सम्मान दिया जा सकता है, मित्रता होती, व्यवहार बनता है आदि इसके विपरीत अनुचित, अभद्र या नकारात्मक शब्दो ( अपशब्दों )से कोई हताश होता है, किसी को मानसिक प्रताड़ना मिलती है, किसी के आत्मसमान को ठेस लगती है, नकारत्मकता उतपन्न होती है, शत्रुता पनपती, रोष उत्पन्न होता है, बदले की भवनाये जन्मती हैं, आदि। इसलिए शब्दों की सरचना व चुनाव तथा इन शब्दों का समय स्थान व परिस्थिति के अनुसार उचित अनुचित प्रयोग करने की कला का विकास होना आवश्यक है। 

शब्द अगर औषधि की तरह प्रयोग हो तो रोगी इंसान भी अपने स्वस्थ जीवन की आस में ठीक हो सकता है वहीं यदि शब्द अगर विष की तरह हैं तो स्वस्थ इंसान भी अस्वस्थ हो जाता है।

अतः हमे शब्दो की अदभुत शक्ति को समझना व जानना अति आवश्यक है और शब्दों का उचित अनुचित प्रयोग व चुनाव स्वयं पर निर्भर है।

वास्तव में शब्द शास्त्र एक व्यापक विषय है जिसका अति सूक्ष्म संक्षिप्त रूप आपके समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।

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