प्रस्तुत है आपके लिए Hindi Short Poems (लघु हिंदी कवितायेँ) जो अलग अलग विषयों पर बहुत ही संछिप्त रूप में मेरे द्वारा लिखित हैं। इन कविताओं में जीवन की कुछ अच्छी और सच्ची बातों का समावेश है जो वास्तिवकता को अप्रत्यक्ष रूप से बयां करने का प्रयास करती हैं।
Hindi short poem | हिंदी लघु कविता |
जीवन एक कला है
जीवन जीना एक कला है
न जाने कैसे ये बला है
जन्म का होना न समझौता
न मौत का दिन टला है
भीड़ से घिरे चारो ओर
हर इंसान देखो अकेला है
बहुत से आये न टिक पाए
बस न किसी का गया है
जीवन जीना एक कला है
न जाने कैसे ये बला है
न जाने कैसे ये बला है
जन्म का होना न समझौता
न मौत का दिन टला है
भीड़ से घिरे चारो ओर
हर इंसान देखो अकेला है
बहुत से आये न टिक पाए
बस न किसी का गया है
जीवन जीना एक कला है
न जाने कैसे ये बला है
दिल अपना जो भारी है
लादे बोझा, बेमतलब बे-हिसाब इन बातों का।
अध सोई नम आँखे जागती कई रातों का।।
उतार के फैंको... क्यों फर्जी ढोते हो।
शब्दों से आहत होकर क्यूं तुम रोते हो ।।
प्रेम से देखो सबकुछ अच्छा दिखता है
सड़क पे हल्का वाहन गति में चलता है
खेल है मन का बाकी सब दुनियादारी है।
दौड़ना है या थक कर चलना ये तेरी जिम्मेदारी है
आज़ाद करो अब खुद को इन उलझन से
लिए फिरते हो दिल अपना जो भारी भारी है।
अध सोई नम आँखे जागती कई रातों का।।
उतार के फैंको... क्यों फर्जी ढोते हो।
शब्दों से आहत होकर क्यूं तुम रोते हो ।।
प्रेम से देखो सबकुछ अच्छा दिखता है
सड़क पे हल्का वाहन गति में चलता है
खेल है मन का बाकी सब दुनियादारी है।
दौड़ना है या थक कर चलना ये तेरी जिम्मेदारी है
आज़ाद करो अब खुद को इन उलझन से
लिए फिरते हो दिल अपना जो भारी भारी है।
जीवन अपना बनालो
खुद को पानी की तरह ऐसा हल्का बनालो
जैसी स्थिति हो वैसी में तुम खुद को ढालो
सहज सरल और लचीले हो जाओ इतना
पात्र मिले चाहे जैसा आकार उसी का ढालो
जीवन है तेरा और तू इसका मालिक
खुली हैं चारो दिशाएँ चाहे जिधर भगालो
न करो चिन्ता अँधियारो से लड़ना सीखो
जितना चाहो उतना उजियारे के दीप जलालो
न होगी रुकावट मार्ग पर चलते रहने से
जैसा तुम चाहो वैसा जीवन अपना बनालो
जैसी स्थिति हो वैसी में तुम खुद को ढालो
सहज सरल और लचीले हो जाओ इतना
पात्र मिले चाहे जैसा आकार उसी का ढालो
जीवन है तेरा और तू इसका मालिक
खुली हैं चारो दिशाएँ चाहे जिधर भगालो
न करो चिन्ता अँधियारो से लड़ना सीखो
जितना चाहो उतना उजियारे के दीप जलालो
न होगी रुकावट मार्ग पर चलते रहने से
जैसा तुम चाहो वैसा जीवन अपना बनालो
प्रेम की जरूरत नही
मिले हो ऐसे जैसे, सारा जहाँ हमारा
हे प्रिय स्वीकार करो, प्रणाम हमारा
न कोई चिंता न कोई डर साथ तुम्हारे
सच हो तुम ही इस जग में सदा हमारे
छुपा लूँ ग़म जो मन मे फिर भी पहचानो
छोटी हो या मोटी हो बातें सब तुम जानो
प्रेम है निःस्वार्थ सत्य, इसका कोई मुहूर्त नही
न है ऐसा कोई जिसको प्रेम की जरूरत नही
हे प्रिय स्वीकार करो, प्रणाम हमारा
न कोई चिंता न कोई डर साथ तुम्हारे
सच हो तुम ही इस जग में सदा हमारे
छुपा लूँ ग़म जो मन मे फिर भी पहचानो
छोटी हो या मोटी हो बातें सब तुम जानो
प्रेम है निःस्वार्थ सत्य, इसका कोई मुहूर्त नही
न है ऐसा कोई जिसको प्रेम की जरूरत नही
ज़िदगी खुशी से बिताना
न तो है कोई अपना जगत में
न ही कोई बेगाना
चिन्ता है किस बात की
चिन्ता है किस बात की
जब ले कुछ नही जाना
है तो ये माया नगरी,
है तो ये माया नगरी,
दुनिया जो जादू से भरी
मन का बोझ है फिर भी
मन का बोझ है फिर भी
लादे हो ये भारी गठरी
मजबूत बनो खुद में
मजबूत बनो खुद में
और हवा के जैसे बहना
बंधन है बस एहसास का
बंधन है बस एहसास का
प्रेम से जुड़क रहना
सुख दुख तो चक्का हैं
सुख दुख तो चक्का हैं
जिनसे कभी न घबराना
ज़िन्दगी ये एक ही मौका है
ज़िन्दगी ये एक ही मौका है
इसे खुशी से बिताना
हाँ और न
हाँ और न के बीच मे,
है सारा जीवन समाया ।
सीख गया जो इसको,
वो कभी न भरमाया ।
केवल हाँ से ही काम नही चलता,
कभी कभी न भी है कहना पड़ता ।
न तो हर घड़ी न न कहना है,
और न ही हाँ हाँ ही कहना है,
सही वक्त और जब मौक़ा देखो,
हाँ न में से बस कोई एक कह दो।
और जो भी कहना जोश में कहना,
आत्मशक्ति से हमेशा भरपूर रहना ।
दोनो में अंतर और बस कुछ दूरी है
सन्तुलन में बने रहना भी तो जरूरी है
हाँ, न का ही तो यहाँ सब मेल है
पास और दूर जाने बस खेल है
है सारा जीवन समाया ।
सीख गया जो इसको,
वो कभी न भरमाया ।
केवल हाँ से ही काम नही चलता,
कभी कभी न भी है कहना पड़ता ।
न तो हर घड़ी न न कहना है,
और न ही हाँ हाँ ही कहना है,
सही वक्त और जब मौक़ा देखो,
हाँ न में से बस कोई एक कह दो।
और जो भी कहना जोश में कहना,
आत्मशक्ति से हमेशा भरपूर रहना ।
दोनो में अंतर और बस कुछ दूरी है
सन्तुलन में बने रहना भी तो जरूरी है
हाँ, न का ही तो यहाँ सब मेल है
पास और दूर जाने बस खेल है
करियर चुन न पाया
सपना था जो बनने का वो करियर चुन न पाया
पापा की मर्जी थी उसमे भी लगन से रम न पाया
मन मे उठा पठक थी चल रही, खुद से लड़ न पाया
शौक़ था कुछ भीड़ से जुदा करने का कर न पाया
लड़कपन था मेरा जो अब तक ज़िद करता आया
ठोकर खाई जब खुद चलकर तब समझ मे आया
मित्र से साझा करते अच्छे बुरे सब हालात
मात-पिता से क्यों नही करते अपने दिल की बात
जिनसे मिला है जीवन और रहते हमेशा साथ
किसान
सस्ते कपड़े पहनू आधी रोटी खानी है
करता हूँ मैं खेती तेरी भूक मिटानी है
अन्न बिन न है जीवन का आधार
फिर भी देश का हर किसान है बीमार
करे चाहें जितनी मेहनत न कोई जाने
चिंता है ज्यादा से ज्यादा अन्न उगाने
लोगो को क्यों नही भनक है इसकी
न्यू जनरेशन खेती को भी न पहचाने
अन्न तो है हम इंसानो की मूल जरूरत
फिर क्यों है किसानों की ऐसी मूरत
कभी आंख उठाकर देखो शहर में रहने वालों
जो देता है देश को भोजन वो क्यों ग़रीब है रहता
क्यों जाड़ा है सहता , सूरज की आग में है जलता
कुछ तो मजबूरी होगी वरना किसान न रोता होता
बेवजह ही यूँ आत्महत्या न करता रहता ।
अपने दिल से पूछो
कितना करते हो अपने देश की ख़ातिर
मित्र की ख़ातिर पड़ोसी के साथ
जरूरत पड़ने पर काम जो पहले आते
क्या कभी हम उनके लिए समय गवांते
दिल दुखाया किस किस का ,
काम न आये जिन जिन के
मुख से निकले चुभते शब्द
जो कभी न वापिस आते
किन किन को हैं बोले तुमने
कभी एकांत में जाकर बैठो
खोल दो मन के द्वार झाँक लो एक बार
जिनसे मांगनी है माफी और किनको करना है माफ
दिल पर रख कर हाथ गहराई से सोंचो
मौका जो मिले कभी तो अपने दिल से पूछो
बदलते मौसम के साथ
हम बढ़े और बढ़ाये लोगो को ,
करें सब का साथ सब का विकास
खुद को बदले और बदले लोगो को,
बदलते मौसम के साथ
सच्चाई की राहों पे जो है चलते,
जिनके लिए हैं हम और हमेशा साथ
खुद को बदले और बदले लोगो को,
बदलते मौसम के साथ
सींखे और सिंखाये, प्रेम सौहार्द बढ़ाये,
ज्ञान का जलता दीपक है सबके पास
खुद को बदले और बदले लोगो को,
बदलते मौसम के साथ
नई नई तकनीकी को बढ़कर जाने ,
आदर करें सबका और सबको माने
धरती पे जीवो में है मानव सबसे खास,
खुद को बदले और बदले लोगो को
बदलते मौसम के साथ
मुजरिम है वो जो
मुजरिम है वो जो
तकलीफ़ देता है अपनी माँ को
मुजरिम है वो जो
बहस करता है अपने पिता से
मुजरिम है वो
जो ईर्ष्या रखता है अपने भाई से
मुजरिम है वो
जो झूट बोले अपने मित्र से
मुजरिम है वो
जो किसी के साथ विश्वाशघात करे
मुजरिम है वो
जो समाज के प्रति बुरा सोंचे
मुजरिम है वो
जो किसी की बेवजह बुराई करें
मुजरिम है वो ,
मुजरिम है वो ,मुजरिम है वो
न सजा है और न ही कोई कानून
इन मुजरिमो के लिये
बस एक चोट है ,अदृश्य चोट ,
जो मिलती है इनको
Image : Google Pixabay
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