हम किसी का उत्साह कैसे बढ़ाएं। उत्साह बढ़ाने के लिए क्या आवश्यक जानकारी होनी चाहिए। वो कौन से ऐसे तरीके हैं जिनसे हम स्वयं के साथ साथ दूसरों के उत्साह में वृद्धि कर सकते हैं। क्या जीवन में उत्साह का होना जरुरी है यदि हाँ तो कैसे आदि।
उत्साह क्या है। what is Excitement
उत्साह अर्थात उमंग , हौंसला , चेष्टा जो स्वयं के अंदर उत्पन्न होता है जिसके होने से हम किसी कार्य को करने के लिए प्रेरित होते हैं, अपने अंदर नई ऊर्जा को महसूस करते हैं। उत्साह हमारे आत्मविश्वाश वृद्धि में सहायक है जो हमे बाह्य व आतंरिक किसी भी रूप से प्राप्त हो सकता है। हमारे अंदर अपने जीवन में उत्साह का होना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना जीने के लिए आवशयक पौष्टिक भोजन । जिस प्रकार हमें अपने आप को जीवित रखने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है उसी प्रकार उस जीवन में आगे बढ़ने के लिए उत्साह की आवश्यकता होती है। जिसका बढ़ना और घटना निर्भर करता है हमारे ऊपर। हमारे मन को प्रेरित करने के लिए हमें अपने अंदर उत्साह को बनाये रखना बहुत जरुरी है ताकि हम अपने आप को ऊर्जावान महसूस कर सके और जीवन को बेहतर तरीके से जी सके।
Excitement means zeal, enthusiasm, consciousness which arises inside ourselves, due to which we are motivated to do some work, feel new energy inside us. Having enthusiasm in our lives is as important as the nutritious food we need to live. Just as we need food to keep ourselves alive, similarly it requires enthusiasm to move forward in that life. Whose Increas and decreas depends on us. In order to inspire our mind, it is very important for us to keep the enthusiasm in us so that we can feel energetic and live our life better.
Excitement means zeal, enthusiasm, consciousness which arises inside ourselves, due to which we are motivated to do some work, feel new energy inside us. Having enthusiasm in our lives is as important as the nutritious food we need to live. Just as we need food to keep ourselves alive, similarly it requires enthusiasm to move forward in that life. Whose Increas and decreas depends on us. In order to inspire our mind, it is very important for us to keep the enthusiasm in us so that we can feel energetic and live our life better.
उत्साह कैसे बढ़ाये | उत्साह क्या है। what is Excitement |
एक इंसान यदि स्वयं के मन पर नियंत्रण नही कर पा रहा जो उसका आंतरिक भाग है जिसे अन्य कोई न तो देख सकता है न ही सुन सकता है और न ही समझ सकता है जबतक वह स्वयं न चाहे तब तक कोई अन्य व्यक्ति पूरी तरह कैसे सफ़ल हो सकता है उसका उत्साह बढ़ाने में।
अतः यदि किसी का उत्साह बढ़ाना है तो सर्वप्रथम आवश्यक है सामने वाला उत्साहित होने के लिये तैयार हो अन्यथा आपके द्वारा बढ़ाये गए उत्साह का उसपर कोई प्रभाव नही पड़ने वाला और आपका समय भी व्यर्थ जाने वाला है। जैसे एक प्रेरणादायक वक्ता किसी एक स्थान पर उन सभी को उत्साहित करता है जो उत्साह प्राप्ति के लिए एक ग्राहक ( उपभोक्ता) के सामान स्वयं को उस स्थान पर वक्ता के समक्ष प्रस्तुत करता है तभी वक्ता भी सफ़ल होता है उन सभी को उत्साहित करने में।
हमारे अंदर उत्साह कई माध्यम से बढ़ता है -
इस संसार मे किसी भी व्यक्ति का उत्साह बढ़ता है शब्दों से, दृश्यों से,क्रियाकलापों से, चित्रों से, संघर्षों से,ध्वनियों से, स्वाद से, स्पर्श से, सुगंध से, आदि । आप और हमको सर्वप्रथम यह सुनिश्चित करना होगा कि हम किसी का उत्साह किस माध्यम से बढ़ा सकते हैं या सामने वाला किस माध्यम से स्वयं को आपके द्वारा बढ़ाये गए उत्साह से उत्साहित महसूस कर सकता है। हालांकि अधिकतर किसी का उत्साह बढ़ाने में शब्द माध्यम का ही प्रयोग किया जाता है।
यदि कोई अपंगता की श्रेणी में आता है तो वह स्वयं से ही उत्साहित हो सकता है जब वह चाहे। क्योंकि उसके मस्तिष्क में उसकी अपंगता उसके लिए उस कांटे के सामान है जो उसे स्थाई रूप से चुभा हुआ है। और वह कांटा तभी निकल सकता है जब उसकी अपंगता खत्म हो जाए। ऐसी स्थिति में वह किसी ऐसे माध्यम की अपेक्षा रखेगा जो उसकी अपंगता भले ही न खत्म कर पाए पर उसे इतना उतसाहित कर ले जाये कि उसे लगे, हां भले ही मैं अपंग हूँ पर मेरी अपंगता मेरे अच्छे जीवन जीने में रुकावट नही है और यदि उत्साहित करने का माध्यम और तरीका सटीक रहा तो हो सकता है वह अपनी अपंगता को भी भूल जाये । यदि हम उसे वास्तव में उत्साहित करने के लिए उचित माध्यम का चुनाव कर ले जातें है तो हम उसका उत्साह बढ़ाने में सफल हो जायेंगे और उसको भी हमारे द्वारा बढ़ाये गए उत्साह से उसके जीवन मे लाभ होगा।
जैसे - यदि कोई व्यक्ति जन्मजात बहरापन या अश्रव्यता से ग्रसित है साथ ही वह सामाजिक व मानसिक स्तर पर स्वयं में परेशान भी रहता है ऐसे में उसे उतसाहित कैसे किया जाए । शब्दो से तो कदापि संभव नही है । भले ही आप और हम कितने ही अच्छे प्रेणादायक शब्दो का चुनाव कर ले जाएं। ऐसी स्थिति में वह स्वयं को दृश्यों से जानकारी प्राप्त कराने की कोशिश करता है पर वह जानकारी वह किस रूप में ले रहा है यह वही समझ सकता है। और यदि उसको इस प्रकार के दृश्य दिखाई पड़ जाएं जो उसे समझ आ जाएं तो हो सकता वह उत्साहित हो जाये।
यदि आप उत्साहित होना चाहते हैं तो सर्वप्रथम आपके अंदर भी उत्साहित होने की ललक होनी चाहिए और एक सटीक माध्यम जो आपकी परिस्थिति के अनुकूल हो तभी आप स्वयं को उत्साहित महसूस कर सकते हैं। और सामने वाला भी सफल होगा आपको उत्साहित करने में अन्यथा आप निराश हो सकते हैं।
अतः जब हमे किसी का उत्साह बढ़ाना होता है तो सामने वाले कि परिस्थिति के अनुसार सर्वप्रथम उसके अनुकूल माध्यम का चुनाव करतें हैं। साथ ही यह निश्चित करते हैं कि वास्तव में वह स्वयं में उत्साह वृद्धि के लिए गंभीर है या नही।
उत्साह हमारे मन में पहले से व्याप्त है जो किसी माध्यम की सहायता से घटता और बढ़ता रहता है जो निर्भर करता है किसी माध्यम पर जिसे आप और हम अपनी समझ के आधार पर चुनते हैं।
जैसे - जब कई व्यक्ति एक कार्य को करते हैं और उसमे सफल भी हो जाते हैं तो अक्सर हमारे अंदर उन सभी को देखकर उत्साह बढ़ता है उस कार्य के प्रति और हमे प्रतीत होता है कि यदि हम भी इस कार्य को करें तो सफ़ल हो सकते हैं ठीक इसके विपरीत यदि उनमे से कुछ व्यक्ति सफ़ल हुए और कुछ असफ़ल हुए या सभी असफ़ल हो गए तो हमारे अंदर उस कार्य के प्रति उत्साह की कमी हो जाएगी ।
उत्साह हमारे अंदर आंतरिक रूप से विधमान है पर अक्सर इसका संबंध भौतिक जगत में बाहर ही खोजा जाता है जो कई माध्यमो,स्रोतों की अपेक्षा रखता है। आप और हमे स्वयं के अंदर किसी बाहरी माध्यम से उत्साह बढ़ाने की अपेक्षा छोड़ कर स्वयं में उत्साह बृद्धि निमार्ण प्रक्रिया शुरु करने की आवश्यकता है ।
यदि कोई स्वयं को उत्साहित करने के लिए बाह्य स्रोतों , माध्यमो के सहारे रहता है तो यह आवश्यक है कि उसका उत्साह जितनी तेज़ी से बढ़ेगा उतनी ही तेज़ी से घट भी जाएगा । इसलिए आप और हमे स्वयं के अंदर उत्साह बृद्धि के लिए स्वयं इसके लिए कार्य करना पड़ेगा ताकि हम सदैव के लिए उत्साहित रह सकें। जब आप और हम स्वयं से उत्साहित होने की कला सीख जाएंगे तो कभी किसी अन्य माध्यम की आवश्यकता नही रह जायेगी।
इसलिए स्वयं को प्रेरित करें। मनुष्य अपने सोंचने के तरीके से ही भिन्न हैं जो हम सभी के जीवनशैली को पृथक करता है। प्रत्येक मनुष्य के अंदर व्याप्त उत्साह भी उसके सोंचने मात्र से ही बढ़ता घटता है जो यदि वह चाहे तो किसी माध्यम की सहायता ले सकता है और यदि चाहे तो वह स्वयं के अंदर अपने आप को अपनी सकारात्मक सोंच से उत्साहित महसूस कर सकता है।
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