सीखना या अधिगमन एक कला है जो निरंतर सीखते रहने से स्वयं में स्वतः विकसित होती रहती है या भौतिक जगत में आने के बाद कुछ मामलो में स्वयं से सीख जाते हैं । यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे शामिल होकर हम किसी भी नए कार्य को करना जान सकते हैं। सभी के सीखने का तरीका और नजरिया अलग लग होता है,कोई शीघ्रता के साथ सीखता है तो किसी को सीखने में देर लगती यह उसके स्वयं की समझ और बुद्धि पर आधारित होता है। मनुष्य जन्म के बाद से निरंतर सीखता ही रहता है जो उसके लिए अनुभव के रूप में सरंक्षित होता रहता है और इन्ही अनुभवों के आधार पर बाह्य व आंतरिक वतावरण में अपने आप को समायोजित करता रहता है और लाभ प्राप्त करता रहता है। मनोविज्ञान में सीखना वह प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त चलने वाली व्यापक सतत और महत्वपूर्ण है जिससे मनुष्य बहार नहीं निकल सकता भले ही वह सजग रहते सीखना छोड़ दे परन्तु उसका अवचेतन मन अदृस्य रूप सीखता ही रहता है। सीखने की शक्ति जिसके अंदर दूसरों के मुकाबले अधिक रहती है उसका जीवन अधिक विकसित होता है। इसलिए अपनी सीखने की कला को विकसित करना चाहिए।
वास्तव में जब तक कोई व्यक्ति इस आंतरिक भावना से बाहर नहीं निकलता तब तक वह कुछ नया नहीं सीख सकता है। इसलिए बेहतर यही होगा पहले हमे उस काल्पनिक जाल को तोड़ना होगा जिसमे हम फंसे हैं जो हमे यह बताता है की हमने सब सीख लिया है अब कोई आवश्यकता नहीं सीखने की।
What is Learning in Hindi | सीखना क्या है ?
सीखना क्या है ? what is Learning आज हम इस विषय पर बात करेंगे और सीखेंगे कि वास्तव में एक मनुष्य के लिए सीखना क्या है ? सबसे पहले तो हमें यह स्मरण रहे कि हम सबकुछ नहीं जानते अर्थात यदि हमारे अंतर्मन में ये भावना है कि मुझे सब पता है, मै सब जानता हूँ, तो स्पष्ट है हमें नया कुछ सीखने की आवश्यकता नहीं है। इसलिए सबसे पहले हमे इस संदेह से बाहर निकलना होगा तभी हम कुछ सीख सकते हैं अन्यथा नहीं।what is Learning in Hindi | सीखना क्या है ? |
वास्तव में जब तक कोई व्यक्ति इस आंतरिक भावना से बाहर नहीं निकलता तब तक वह कुछ नया नहीं सीख सकता है। इसलिए बेहतर यही होगा पहले हमे उस काल्पनिक जाल को तोड़ना होगा जिसमे हम फंसे हैं जो हमे यह बताता है की हमने सब सीख लिया है अब कोई आवश्यकता नहीं सीखने की।
सीखना जीवन की एक निरंतर प्रक्रिया है जिससे प्रत्येक मनुष्य को गुजरना पड़ता है। हम इस प्रक्रिया से बहार नहीं निकल सकते हैं। जीवन के प्रत्येक स्तर पर हम जाने अनजाने में सीखते ही रहते हैं वह चाहे किसी भी रूप में हो।
हम सीखने की इस प्रक्रिया में शामिल नए तथ्यों से परिचित होतें हैं जो हमारे मानस ग्राफ पर अंकित होते हैं। इस प्रक्रिया में हमारे मस्तिष्क के दोनों भाग एक चेतन मन और दूसरे अवचेतन मन काम करते हैं। और यही तथ्य जानकारी के रूप में हमें हमारे जीवन में उपयोगी होतें हैं। कोई भी व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में स्वयं के द्वारा सीखे गए तथ्यों के आधार पर ही आप अपने को इस मानव समाज में प्रस्तुत करता है।
किसी भी व्यक्ति कानर्स जीवन प्राथमिक जानकारियों को प्राप्त करने और उन्हें सीखने में व्यतीत होता है और जब हम प्राथमिक जानकारी को सीख चुकें होते हैं तब हम उस प्राथमिक जानकारी के आधार पर कई विकल्पों में से कुछ विकल्पों का चुनाव कर किसी एक या दो में होते हैं। गहनता से सीखते हैं जो हमारे जीवन को आर्थिक, सामाजिक, सांसारिक और पारिवारिक रूप में आगे बढ़ाने में सहायक होता है। इस दौरान हमे जो अनुभाव प्राप्त होते हैं वे भी हमारे लिए सीखते हैं जिनका प्रयोग कर हम दूसरों को भी सीखा सकते हैं।
इस भौतिक संसार में जब हम पहली बार किसी नवजात वस्तु, कला, विषय, शिक्षा, व्यक्ति आदि से परिचित होतें हैं तो उसके बारे में किसी अन्य के माध्यम से प्राथमिक जानकारी प्राप्त करते हैं ताकि हम उसके बारे में जान सके या किसी नए विषय को जानने की कला सीखना चाहिए मध्यम कोई भी हो सकता है इसलिए पहली बार आपको किसी के बारे में जानकारी के लिए किसी न किसी माध्यम की सहायता लेनी ही पड़ेगी बाद में भले ही उसे छोड़ दिया जाए। प्रत्येक नव कला, विषय, विषय, वस्तु आदि को जानना भी एक कला है जो मनुष्य धीरे धीरे सीखता है।
मानव अपने शुरुआती दौर से सीखता ही चला आया है। सीखने की कला ही आज मानव को इतने आधुनिक विकास में लेकर आई है और आगे भी यह जारी रहेगी।
मनुष्य अपने जीवन की शुरुआत में सबसे पहले सभी प्राथमिक उपयोगकर्तावो को अपने अभिवाक से सीखता है उसके बाद वह विद्यालय में अध्यापको से सीखता है फिर बोध होने पर स्वयं से सीखने का प्रयास करता है और आगे बढ़ने पर समाज से सीखता है, संसार से सीखता है। , लोगो से व्यवहारिक रूप में सीखता है, आपने कार्यों से सीखता है और सीखते हुए जीवन निर्वाह करते हुए आगे बढ़ता रहता है जब तक उसका जीवन रहता है।
यदि हमारा मन ये मान ले की अभी तक जो हमने सीखा है वह पर्याप्त है तो जाहिर है तो हम आगे नहीं सीखेंगे ठीक है इसके विपरीत हमारे अंदर हमेशा सीखने की जिज्ञाशा रहेगी जो हमें प्रेरित करती रहेगी कुछ न कुछ नया सीखने के लिए या सीखे हुए में। और निखार लाने के लिए।
किसी भी व्यक्ति कानर्स जीवन प्राथमिक जानकारियों को प्राप्त करने और उन्हें सीखने में व्यतीत होता है और जब हम प्राथमिक जानकारी को सीख चुकें होते हैं तब हम उस प्राथमिक जानकारी के आधार पर कई विकल्पों में से कुछ विकल्पों का चुनाव कर किसी एक या दो में होते हैं। गहनता से सीखते हैं जो हमारे जीवन को आर्थिक, सामाजिक, सांसारिक और पारिवारिक रूप में आगे बढ़ाने में सहायक होता है। इस दौरान हमे जो अनुभाव प्राप्त होते हैं वे भी हमारे लिए सीखते हैं जिनका प्रयोग कर हम दूसरों को भी सीखा सकते हैं।
इस भौतिक संसार में जब हम पहली बार किसी नवजात वस्तु, कला, विषय, शिक्षा, व्यक्ति आदि से परिचित होतें हैं तो उसके बारे में किसी अन्य के माध्यम से प्राथमिक जानकारी प्राप्त करते हैं ताकि हम उसके बारे में जान सके या किसी नए विषय को जानने की कला सीखना चाहिए मध्यम कोई भी हो सकता है इसलिए पहली बार आपको किसी के बारे में जानकारी के लिए किसी न किसी माध्यम की सहायता लेनी ही पड़ेगी बाद में भले ही उसे छोड़ दिया जाए। प्रत्येक नव कला, विषय, विषय, वस्तु आदि को जानना भी एक कला है जो मनुष्य धीरे धीरे सीखता है।
मानव अपने शुरुआती दौर से सीखता ही चला आया है। सीखने की कला ही आज मानव को इतने आधुनिक विकास में लेकर आई है और आगे भी यह जारी रहेगी।
मनुष्य अपने जीवन की शुरुआत में सबसे पहले सभी प्राथमिक उपयोगकर्तावो को अपने अभिवाक से सीखता है उसके बाद वह विद्यालय में अध्यापको से सीखता है फिर बोध होने पर स्वयं से सीखने का प्रयास करता है और आगे बढ़ने पर समाज से सीखता है, संसार से सीखता है। , लोगो से व्यवहारिक रूप में सीखता है, आपने कार्यों से सीखता है और सीखते हुए जीवन निर्वाह करते हुए आगे बढ़ता रहता है जब तक उसका जीवन रहता है।
यदि हमारा मन ये मान ले की अभी तक जो हमने सीखा है वह पर्याप्त है तो जाहिर है तो हम आगे नहीं सीखेंगे ठीक है इसके विपरीत हमारे अंदर हमेशा सीखने की जिज्ञाशा रहेगी जो हमें प्रेरित करती रहेगी कुछ न कुछ नया सीखने के लिए या सीखे हुए में। और निखार लाने के लिए।
- हर वो नया कार्य जिसे वह करना नहीं जानता है उसके बारे में जानना फिर उसे प्रयोगात्मक रूप से करना और करते रहना जब तक उसमे महारत न हाँसिल जाए तब तक वह सीखने की प्रक्रिया में शामिल रहेगा। और एक बार सीखने के बाद वह इसे दूसरों को सीखने के लिए तैयार हो सकता है।
- जन्म से लेकर मृत्यु तक जीवन को सहज सरल और स्वयं के अनुकूल बनाने के लिए प्रयास करते रहना सीखना है।
- कार्य के दौरान कार्य को पहले से बेहतर बनाते जाना है सीखना।
- अपनी कला को एक बार विकसित कर लेने के बाद उसमें और अधिक रचनात्मक तरीको को अपनाते जाना है सीखना।
- सीखना एक कला है जिसको विकसित करते रहना चाहिए ताकि हम बेहतर से बेहतर सीख सकें।
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very nice information
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