मन मे होती खुद से लड़ाई
जब आती तन्हाई
खुद को देखूँ ,बाते करूँ मैं खुद से
सोंचा इतना नींद न आई
जब आती तन्हाई
कितना रोया कितना तड़पा
उसको याद न मेरी आई
जब आती तन्हाई
क्या करूँ क्या न करूँ
कहाँ जाऊँ कहाँ बैठूँ
किससे मिलूँ मैं ,कैसे दिल बहलाऊँ
अकेला हूँ कैसे मन समझाऊँ
गिर कर उठता उठकर गिरता
कितनी ठोकर खाई
जब आती तन्हाई
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